"Betaul" bole bina taule
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कुछ गुजरी-बिसरी यादें हैं,
कुछ भीगी-गीली आँखे हैं,
यादों के पंखो से सहलाये जो,
वो जख्म हुए पुराने है,
अश्को के खारे पानी में,
धुंधले हुए किनारे है.
यूँ दूर हुए इस दुनिया से,
हम तो फसे मझधारे है,
कोई आस नहीं, कोई प्राश नहीं,
जीवन “बतौल” व्यर्थ हुआ,
अब मौत का भी संत्रास नहीं !!
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